Inspiring from WhatsApp University
*विमान में भोजन* मैं अपनी सीट पर बैठा था, दिल्ली के लिए उड़ान भरते हुए — लगभग3 घंटे की यात्रा थी। मैंने सोचा, एक अच्छी किताब पढ़ूंगा और एक घंटा सो लूंगा। टेकऑफ़ से ठीक पहले, लगभग 10 सैनिक आए और मेरे आसपास की सीटों पर बैठ गए। यह देखकर मुझे रोचक लगा, तो मैंने बगल में बैठे एक सैनिक से पूछा, “आप कहां जा रहे हैं?” “*आगरा, सर! वहां दो हफ्ते की ट्रेनिंग है, फिर हमें एक ऑपरेशन पर भेजा जाएगा,” उसने जवाब दिया।* एक घंटा बीत गया। एक घोषणा हुई — “जो यात्री चाहें, उनके लिए लंच उपलब्ध है, खरीद के आधार पर।” मैंने सोचा — अभी लंबा सफर बाकी है, शायद मुझे भी खाना लेना चाहिए। जैसे ही मैंने वॉलेट निकाला, मैंने सैनिकों की बातचीत सुनी। “चलो, हम भी लंच ले लें?” एक ने कहा। “नहीं यार, यहां बहुत महंगा है। जमीन पर उतरकर किसी ढाबे में खा लेंगे,” दूसरे ने कहा। “ठीक है,” पहला बोला। *मैं चुपचाप एयर होस्टेस के पास गया और कहा, “इन सभी को लंच दे दीजिए।” और मैंने सबका भुगतान कर दिया।* उसकी आंखों में आंसू थे। बोली, “*मेरे छोटे भाई की पोस्टिंग कारगिल में है, सर। ऐसा लगा जैसे आप उसे खाना खिला रहे हों। धन्यवाद।”* उसने सिर झुकाकर नमस्कार किया। वो पल मेरे दिल को छू गया। आधे घंटे में सभी सैनिकों को उनके लंच बॉक्स मिल गए। खाना खत्म करने के बाद, मैं फ्लाइट के पीछे वॉशरूम की ओर गया। पीछे की सीट से एक वृद्ध व्यक्ति आए। “*मैंने सब देखा। आप सराहना के पात्र हैं,” उन्होंने हाथ बढ़ाते हुए कहा।* “*मैं भी इस पुण्य में भाग लेना चाहता हूँ,” उन्होंने चुपचाप ₹500 मेरे हाथ में रख दिए।* मैं वापस अपनी सीट पर आ गया। आधे घंटे बाद, विमान का पायलट मेरी सीट तक आया, सीट नंबर देखता हुआ। “मैं आपका हाथ मिलाना चाहता हूँ,” वह मुस्कुराया। मैं खड़ा हुआ। उसने हाथ मिलाते हुए कहा, “मैं कभी फाइटर पायलट था। तब किसी ने यूं ही मेरे लिए भोजन खरीदा था। वो प्यार का प्रतीक था, जो मैं कभी नहीं भूला। आपने वही याद ताज़ा कर दी।” सभी यात्रियों ने ताली बजाई। मुझे थोड़ी झिझक हुई। मैंने ये सब प्रशंसा के लिए नहीं किया था — बस एक अच्छा कार्य किया। मैं थोड़ा आगे बढ़ा। एक 18 साल का युवक आया, हाथ मिलाया और एक नोट मेरी हथेली में रख दिया। यात्रा समाप्त हो गई। जैसे ही मैं विमान से उतरने के लिए दरवाजे पर पहुंचा, एक व्यक्ति चुपचाप कुछ मेरी जेब में रखकर चला गया — फिर एक नोट। विमान से बाहर निकलते ही देखा, सभी सैनिक एकत्र थे। मैं भागा, और सभी यात्रियों द्वारा दिए गए नोट्स उन्हें सौंप दिए। “इसे आप खाने या किसी भी ज़रूरत में उपयोग करिए जब तक ट्रेनिंग साइट पर पहुंचें। जो हम देते हैं, वो कुछ भी नहीं है उस बलिदान के आगे जो आप हमारे लिए करते हैं। भगवान आपको और आपके परिवारों को आशीर्वाद दे,” मैंने नम आंखों से कहा। अब वे दस सैनिक केवल रोटी नहीं, एक पूरे विमान का प्यार साथ लेकर जा रहे थे। मैं अपनी कार में बैठा और चुपचाप प्रार्थना की — “हे प्रभु, इन वीर जवानों की रक्षा करना, जो इस देश के लिए जान देने को तैयार रहते हैं।” एक सैनिक एक खाली चेक की तरह होता है — जो भारत के नाम पर किसी भी राशि के लिए भुनाया जा सकता है — यहां तक कि जीवन तक। दुर्भाग्य है कि आज भी बहुत लोग इनकी महानता नहीं समझते। www.eehcjournal.com चाहें इसे साझा करें या कॉपी करें — यह आपका निर्णय है। पर जब भी इसे पढ़ें, आंखें नम हो जाती हैं। पढ़िए। आगे बढ़ाइए। भारत माता के बेटों का सम्मान — स्वयं का सम्मान है। *जय हिंद* जय भारत
0 Comments:
Post a Comment
Connect with the Authors for any discussion on Energy Environment Interactions
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home